How to Control Obsessive Thoughts
एक मनुष्य के मन में कई प्रकार के हजारो विचार (Thousand of Thoughts) आते है। उनमें से कुछ मन को शांत करने वाले होते है, कुछ खुशी देने वाले तो कुछ जुनूनी (Obsessive) यानि गुस्सा दिलाने वाले भी होते है। यह विचार लगातार मनुष्य के मन में चलते ही रहते है। आज के समय में अधिकतर लोगो के मन में बुरे विचार चलते रहते है। इन्हींं विचारो के कारण मन को थकान होती है और मनुष्य थकान, तनाव (Stress) की अनुभूति करता हैं। जब मनुष्य निंद से उठता है तो वह ताज़गी (Freshness) का अनुभव करता हैं क्योंकि निंद में मनुष्य के विचार कम होते जाते है और उसका मन शांत हो जाता है।
तो क्या हम हमारे विचारो को हमेशा के लिए रोककर अपने मन को शांत कर सकते है क्या यह शक्य है?
नहीं, विचारो को रोक कर अपने मन को शांत करना शक्य नहीं हैं। जब आप विचारो को रोकने की कोशिश करेंगे तो अनुभव करेंगे कि आपको ओर ही विचार आ रहे है। कई लोग जड़ता पूर्वक अपने विचारो को रोकने की कोशिश करते है परंतु यह हानिकारक भी हो सकता है।
जैसे पानी के प्रवाह को रोका नहीं जाता वैसे विचारो को रोका नहीं जा सकता लेकिन उसको परिवर्तित किया जाता है। आज कल पानी को रोकने के लिए बंध का निर्माण करते है परंतु जब पानी का प्रवाह उस बंध के तट से उपर चला जाता है तो वह ओर ही फोर्स से बहता है वैसे ही अगर विचारो को रोकने की कोशिश करेंगे तो वह ओर ही फोर्स (Force) से आएंगे।
यह "राजयोग" का ज्ञान बहुत सहज और बहुत ऊंच पद देने वाला है। राजयोग मेडिटेशन से हम हमारे विचारो को उच्च ते उच्च बना सकते है। राजयोग से हम अपने जीवन में अच्छे गुणोंं की धारणा कर बहुत सारी प्राप्तियाँ भी कर सकते है।
तीन प्रकार के विचार (Three Type of Thought)
1. सकारात्मक विचार (Positive Thought)
सकारात्मक विचार (Positive Thoughts) जो होते है वह उच्च आवृत्ति (High Fequncy) के होते है। सकारात्मक विचार उसे कहते है जो किसी इच्छा या सम्भावना को व्यक्त नहीं करता लेकिन वह वास्तविकता (Reality) को दर्शाते है।
जैसे कोई सोचता है कि "मुझे अमीर बनना है" तो इसे सकारात्मक विचार नहीं कहेंगे क्योंकि ये भविष्य को यानि संभावना को दर्शाता है। परंतु अगर कोई सोचता है कि "मैं अमीर हूँ" तो ये 100% सकारात्मक विचार है फिर भल कोई सच में अमीर हो या न हो उससे फर्क नहीं पड़ता।
हमारा हर संकल्प एक बीज़ है। जैसे वृक्ष का बीज़ बोने से उससे फल मिलते है वैसे ही हमारे हर संकल्प फल देते है। अगर हम संकल्प करते रहेंगे कि मुझे अमीर बनना है तो हम कभी भी अमीर बन ही नहीं पाएंगे। परंतु अगर हम अमीर न होते हुए भी अपने को अपने समझने लगेंगे तो परिस्थितियाँ ही ऐसी बनती जायेंगी कि हमें अमीर बनने के मौके (opportunity) मिलनी शुरू हो जायेगी। सकारात्मक विचार प्रेम, करुणा, शुभभावना, शुभकामना वाले होते है। ऐसे विचारों से मनुष्य की सद्दगति होती है।
2. सामान्य विचार (Nutral Thought)
सामान्य विचार (Nutral Thought) उसे कहते है जो हर पल हमारे मन में चलते रहते है जैसे कि आज मुझे यहाँ जाना है, ये काम करना है, इससे मिलना है या ये खरीदी करनी है आदि आदि...। इसे न तो सकारात्मक विचार कहते है और न ही नकारात्मक विचार।
3. नकारात्मक विचार (Nagative Thought)
नकारात्मक विचार (Nagative Thought) जो होते है वह नीची आवृत्ति (Law Fequncy) के होते है। नकारात्मक विचार उसे कहते है जो खुद के प्रति या किसी ओर के प्रति इर्ष्या, द्वेष, क्रोध से भरे होते है। सकारात्मक विचार की तरह नकारात्मक विचार भी वास्तविकता (Reality) को ही दर्शाते है परंतु ऐसे विचारों से मनुष्य की दुर्गति होती है।
जैसे कोई सोचता है कि "मेरे साथ ही बुरा होता है", "मैं किसी काम के लायक नहीं हूँ या मुझसे ये नहीं हो पाता", "मैं तो गरीब हूँ", "मैं कहीं फैल तो नहीं हो जाऊंगा" तो इसे नकारात्मक विचार कहेंगे।
नकारात्मक विचारों के कारण ही आज मनुष्यों के भीतर ये काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार रूपी पांचो दुश्मनो ने घर बसाया हुआ है। नकारात्मक विचारों से मनुष्य में डर, स्ट्रेस, आत्मविश्वास की कमी जैसे लक्षण दिखाई देते है। इन्हीं विचारों के कारण मनुष्य में शारीरीक और मानसिक बीमारिया भी होती है।
"राजयोग मेडिटेशन" हमें सकारात्मक सोचने का सही तरीका सिखाता है और हम हमारी सोच को सकारात्मक बनाकर ही इन पुराने विकारो पर जीत पा सकते है। तभी हमारे जीवन में परिवर्तन आ सकता है। सकारात्मक सोच के लिए जरूरी है दृढ़ निश्चय - एक अपने आप पर और दूसरा परमात्मा पर। राजयोग मेडिटेशन से हमें जो ज्ञान और योग की शिक्षा प्राप्त होती है, उससे हम अपने निश्चय को मजबूत और दृढ़ बना सकते है।
गुस्से को कैसे रोके (How to Control Angryness)
अपनी सोच या विचार को बदले :
गुस्सा या क्रोध एक विकार है। ये विकार रूपी किचड़े का मूल स्थान हमारा मन ही है। कई दिन या कई सालो से हम जो भी नकारात्मक बातें सोचते आए है उसीके फल स्वरूप यह गुस्सा आता है। जैसे कि हम सोचते है कि "ऐसे लोगो के साथ तो ऐसा ही सुलूक करना चाहिए" तो ऐसी हमारी सोच क्रोध बनकर बाहर निकलती है। तो अब सबसे पहले हमें हमारी सोच पर ही ध्यान देना है कि हम पूरे दिन में क्या क्या सोचते है, जब भी नकारात्मक विचार चले तो उसे तुरंत ही सकारात्मक विचारों में परिवर्तन करें। जैसे कभी भी कोई ख्याल आए कि "आज मेरा मूड खराब है या मेरे साथ ही बुरा होता है" तो तब थोड़ा रुक जाइए और कुछ ऐसा सोचे कि "आज मेरा मूड बहोत ही अच्छा है, मुझे बहुत खुशी हो रही है, मेरे साथ सब कुछ अच्छा ही हो रहा है"।
देखने का नजरिया या दृष्टिकोण बदले :
कई बार दूसरों की गलती और बुराइयों को देखकर भी गुस्सा आता है। जब किसी के प्रति नकारात्मक सोच चले कि "यह तो नालायक है या ईसे कुछ आता ही नहीं, ये किसी काम का नहीं" तब थोड़ा रुक जाइए और कुछ ऐसा सोचे कि "ये बहुत ही अच्छा व्यक्ति है, यह मेरी बहुत ही मदद करता है"। परमात्मा कहते है कि किसी की बुराइयों को नहीं लेकिन उनकी विशेषताओं को देखों।
किसी के प्रति द्वेष, ईर्ष्या हमारे मन मन में क्रोध पैदा करती है तो सभी को प्रेम भरी दृष्टी से ही देखें। सभी को अपना मित्र या साथी समझ प्रेम से बर्ताव करें।
मेडिटेशन करें:
हररोज कुछ समय निकाल मेडिटेशन करें। मेडिटेशन से हम हमारे अंतरमन की गहराईयों (Deep Thought) में जाकर अपनी स्थिति को शांत और सोच को उच्च बना सकते है।
शुद्ध भोजन करें:
अपने हर दिन के भोजन पर ध्यान दे। घर पर बनाया हुआ शुद्ध भोजन ही ग्रहण करें क्योंकि बाझार का खाना बनाने वाले व्यक्ति के जो मन के विचार / वायब्रेशन होते है वह उस भोजन में जाते है और वही खाने वाले के मन पर असर करते है। जिससे क्रोध, द्वेष, ईर्ष्या उत्पन्न होते है। घर का भोजन प्रेम से बनाया हुआ होता है जिससे मन को हल्का रहता है।
अच्छी किताबे पढ़े या विडियों देखें:
आज कल इन्टरनेट, मूवी, टीवी सीरियल्स या न्यूझ जो होते है वह भी हमारे मन पर असर करते है। जितना हो सके अपने को उससे दूर रखे और सकारात्मक या प्रेरणा देने वाले विडियों या न्यूझ को ही देखें। साथ में अच्छी-अच्छी किताबे पढ़े।
अच्छाई का संग करें:
बुरे व्यक्ति के संग में न रहे क्योंकि कहते है कि संग का रंग लगता है। ऐसे ही मित्र या संबंधीओ के संग में रहे जो हमें जीवन के हर डोर पर सही, सकारात्मक सलाह देता हो और आगे बढ़ने के लिए प्रेरणाए देते हो। किसी की बुराई करने वालो से दूर रहे। न तो किसी की बुराई करें और न ही सुने। एक परमात्मा का संग ही हमें जीवन की हर राह पर मदद करता है तो परमात्मा के संग में ही रहे।
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