सभी धर्म में भगवान या परमात्मा को एक ही माना गया है और सभी ने उपर की ओर ईशारा किया है माना परमात्मा कहीं उपर रहता है परंतु उसका सही परीचय किसीने नहीं दिया।
आज सभी धर्म के लोग अपनी-अपनी रीति से भगवान को पुजते है। कोई चर्च में तो कोई मंदिर में तो कोई मस्जिद में जाकर ईसु या भगवान या अल्लाह का नाम लेते हैं लेकिन फिर भी किसी को भगवान से कोई प्राप्ति नहीं होती। भगवान को पाने के लिए कई लोग हठ क्रियाएँ करते है, व्रत, उपवास करते है। जल चढाते हैं, भोग लगाते है, भजन-किर्तन करते है, दान करते है। लेकिन सोचने की बात है क्या ये सब करने से परमात्मा की प्राप्ति होगी?
जब मनुष्य दर दर भटक कर थक जाता है तो वह एक लाचार की तरह जीने लगता है उसे यह जीवन बोज लगने लगता है, उसको कोई राह नहीं दिखती मानो कि उसके सामने अंधेरासा छा गया हो। तब मनुष्य कहता है भगवान है ही नहीं। लेकिन क्या हमने कभी भी यह सोचा है कि परमात्मा हम मनुष्य आत्माओंं से क्या चाहता है?
परमात्मा के बारे में कई ग्रंथ, शास्त्र लिखे गये है लेकिन आज उन शास्त्रों को भी सही तरीके से समझाने वाला कोई नहीं है।
अब जब कि इस संसार में कोई भी पवित्र आत्माएँ ही नहीं है, सभी एक पतित-पावन परमात्मा को पुकारते है कि आकर हमें इस पतित दुनिया से छुडाओ। अब किसी को भी परमात्मा का सही परिचय नहीं है तो उनका सही परिचय कोण दे सकेगा?
अगर हमें किसी व्यक्ति से उसका सही परिचय जानना हो तो हमें उस व्यक्ति के अलावा ओर कोई उसका सही से वर्णन नहीं कर सकता। इसी तरह परमात्मा स्वयं ही इस सृष्टि पर आकर अपना सही परीचय दे सकते है।
सबसे खुशी की बात तो यह है कि - परमात्मा जिसके हम सभी बच्चे है वह हमारा पिता परमात्मा जो कि वह परमधाम का वासी है वह स्वयं इस सृष्टि पर इस कलियुग में आ गया है और उसने आकर अपना सही परिचय भी बताया है और हमें इस सृष्टि के बहुत ही गुह्य राज़ बताये है।
उस परमपिता परमात्मा ने बताया है कि यह संदेश संसार की सभी आत्माओं को सुनाओ ताकि अब तक जो कोई भी आत्मा इस ईश्वरिय ज्ञान को सुनने के लिए या मुझे मिलने के लिए जो तरस रही थी अब मुझसे मिलकर उसकी युगो युग की प्यास बुझा ले।
मुझे बड़ा आनंद आता है यह बताते हुए कि परमात्मा ने सन् १९६९ में सिंध हैद्राबाद के एक नामीग्रामी व्यापारी जिनका नाम दादा लेखराज था, जो कि बाल्यकाल से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे उन्हीं के तन में प्रवेश किया और अपना परिचय देते हुए कहा कि "ज्ञान स्वरुपम् शिवोहम् शिवोहम्", "प्रकाश स्वरुपम् शिवोहम् शिवोहम्", "निजानंद स्वरुपम् शिवोहम् शिवोहम्" यानि अपना नाम "शिव" बताते हुए कहाँ कि मैं ही ज्ञान स्वरुप हूँ और अपना स्वरुप बताते हुए कहाँ कि मैं प्रकाश (लाईट) यानि ज्योतिस्वरुप हूँ। परमात्मा ने उनको कई साक्षात्कार भी कराये, बाद में परमात्मा ने उनका नाम "प्रजापिता ब्रह्मा" रखा और उन्हों को ही सृष्टि के परिवर्तन के लिये निमित बनाया।
परमात्मा ने बताया कि मेरे मीठे-मीठे बच्चों अब यह कलियुगि सृष्टि समाप्त होने वाली है और नई सतयुगी सृष्टि ईसी धरा पर आने वाली है, अब तुम्हें आने वाली सतयुगी दुनिया के लिये पवित्र बनना होगा। परमात्मा ने इसके लिये सच्चा गीता ज्ञान (आध्यात्मिक ज्ञान) देना शुरु किया कि कैसे मनुष्य अपने कर्मो को श्रेष्ठ बनाये और "नर से नारायण और नारी से नारायणी" बने यानी पवित्र बन आने वाली सतयुगी सृष्टि में राज्य पद की प्राप्ति करें। परमात्मा ने इसके लिए "प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरिय विश्वविद्धालय" की स्थापना की। यह एक अनोखा विश्वविद्धालय है जहाँ स्वयं परमात्मा पढ़ाते है क्योंकि यहाँ न तो कोई साधु है न कोई ज्ञानी पुरुष, इसको चलाने वाला स्वयं परमात्मा है। आज इस विश्वविद्धालय के साथ जुड़कर कई सारी आत्माओं ने अपना कल्याण किया यानी अपना जीवन परिवर्तन किया। यह ज्ञान पाने से ही मनुष्यात्मा पवित्र बन मुक्ति का अनुभव करती है।
परमात्मा सर्व धर्म आत्माओं के पिता है।
सबसे अच्छी बात तो यह है कि इस संस्था में किसी के साथ न तो पक्षपात किया जाता है न तो नात-जात का भेदभाव क्योंकि हम सभी चाहे कोई भी धर्म के क्यों न हो, हैै तो एक परमपिता परमात्मा के बच्चे ईसी नाते आपस में हम सभी भाई-भाई है। इसलिए यहाँ पर सभी को आत्मिक दॄष्टि से ही देखा जाता है। परमात्मा ने जो राजयोग (ईश्वरिय ज्ञान या आध्यात्मिक ज्ञान) की शिक्षा दी है उसे पाने का अधिकार सभी धर्म की आत्माओं को हैं। परमात्मा कहते है - "अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित होकर मुझ परमपिता परमात्मा को याद करो, इससे ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम मुक्ति-जीवनमुक्ति को प्राप्त करोंगे"।
अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित होकर परमात्मा को याद करना यही हर मनुष्यात्मा का वास्तविक धर्म (Religion) है। वर्तमान समय को देखें तो यही कह सकते है कि "अभी नहीं तो कभी नहीं" क्योंकि कल क्या होगा कोई नहीं जानता।
आज पुरे विश्व में "प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरिय विश्वविद्धालय" के भारत सहित १३९ देशोंं में ८५०० से भी अधिक सेवाकेंद्र है, वहाँ नि:शुल्क "राजयोग" की शिक्षा दी जाती है। यहाँ के भाई-बहनें आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ कई अन्य प्रवृतियों जैसे कि व्यसन मुक्ति, तनाव प्रबंधन, महिला सशक्तिकरण, सकारात्मक व्यक्तित्व, प्रर्यावरण का संतुलन आदि में अपना निस्वार्थ योगदान दे रहे हैं। संस्था का आंतराष्ट्रिय मुख्यालय पाण्डव भवन, आबू पर्वत है।
इस पेज को अधिक से अधिक लोग – अपने परिवार, मित्र संबंधी, को शेर करें ताकि सभी आत्माएँ इस गुह्य ते गुह्य ज्ञान का लाभ ले सके।
ॐ शांति
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