आध्यात्मिक शक्ति का उपयोग करके प्रदूषण को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?
(How to Control or prevent Pollution Using Spiritual Power)
आज पुरे विश्व में प्रदूषण सबसे बड़ी समस्या है। आज सभी लोग प्रदुषण को नियंत्रित (Control) करने के लिए प्रयास कर रहे है परंतु बढ़ती जाती आबादी को देखते हुए इसे रोकना मुश्किलसा लगता है। ऐसे में आध्यात्मिक ज्ञान ही एक बेहतर उपाय है इस बढ़ते जा रहे पोल्युशन को रोकने का। इसे लागू क्यों नहीं करते?
हमें आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता क्यों हैं?
Why we need "Spiritual Knowledge"
एक होती है बाहर की गंदकी और एक होती है भीतर की गंदगी। यहाँ हम बाहर की प्रकृति की बात नहीं करेंगे परंतु मनुष्य के भीतर मेंं उसके मन रुपी प्रकृति की बात करेेंगे। जब मनुष्य के भीतर बुराइयाँ घर कर जाती है तो वह फिर बाहर स्थूल रुप में भी दिखने लगती है। जब हम आध्यात्मि ज्ञान का उपयोग करके अपने मन में जमा अशुद्ध विचारो रुपी कीचड़े को निकालेंगे नहीं तो बाहर के वायुमंडल में भी शुद्धता दिखाई नहीं देंगी।
आज से कुछ साल पहले देखे, तो आज के मनुष्य के मन, वाणी, वर्तन में बहुत तफ़ावत पड़ जाता है। आज मनुष्य को "आध्यात्मिक ज्ञान" (Spiritual Knowledge) लेने की आवश्यकता है क्योंकि आज मानव अपनी संस्कृति, अनुशासन, गरिमा को भूल गया हैं।
मनुष्य की मुख्य जरूरियात ही है शुद्ध हवा, शुद्ध जल, शुद्ध अन्न लेकिन आज चारों ओर देखें तो पृथ्वी पर सभी जगह पॉल्यूशन ही पॉल्यूशन है। धरती, अन्न, जल, आकाश, वायु सब में पॉल्यूशन ही पॉल्यूशन। यह पॉल्यूशन एक दीमक की तरह है कि जैसे दीमक लकड़ी में आ जाए और उस दीमक को पेस्टीसाइड से खत्म ना किया जाए तो वह पूरे लकड़े का नाश कर देती है, वैसे ही यह पोलूशन चारों और फैल गया है और मनुष्य के जीवन को खत्म कर रहा है। पॉल्यूशन उस हद तक बढ़ गया है कि मनुष्य के लिए सांस लेना तक मुश्किल हो गया है। जिसकी वजह से कई सारी बीमारियां होने लगी है अस्थमा, हार्टअटैक वगैरह।
अगर भूतकाल की ओर नजर डालें तो कुछेक साल पहले ऐसी कोई बीमारियां नहीं थी, यह धरती स्वर्ग थी। उसकी वजह थी कि मनुष्य आत्माएं पवित्र थी। उनके मन, संकल्प शुद्ध और पवित्र थे। लेकिन आज मनुष्य उस हद तक पतित हो चुका है कि उसके दिमाग में भी पॉल्यूशन यानि क्रोध, द्वेष, ईर्ष्या रूपी नकारात्मकता का किचड़ा भरा पड़ा है। अगर उसे ना निकाला जाए तो यह पॉल्यूशन (किचड़ा) उसके दिमाग (मन, बुद्धि, संस्कार) को खत्म कर देगा।
प्रदूषण के प्रभाव (Pollution Effects) :
(1) Air Pollution Effects
हवा में फैलने वाले प्रदूषण से मनुष्य के शरीर (Human Body) पर असर पड़ता है। आज कई सारे लोगो को सांस लेने में दिक्कत होती है क्योंकि हवा में ऑक्सीजन वायु कम हो गई है। कई लोग विकलांग पैदा होते है। बढ़ते प्रदूषण का प्रभाव मनुष्य के शरीर के साथ-साथ उसके मन पर भी पड़ता है। उसकी वजह से ही आज मनुष्य को चिंता (Anxiety), तनाव (Tension), अवसाद (Depression) जैसी बीमारी का सामना करना पड़ता है।
(2) Water Pollution Effects
पानी का प्रदूषण बढ़ने से आज कई सारे लोगो को पीने का शुद्ध पानी भी नसीब होता। कहते है भारत में घी की नदिया बहती थी वहाँ आज मनुष्य को अपनी दैनिक जरूरियातों को पूरा करने के लिए भी कितनी मेहनत करनी पड़ती है।
प्रदूषण कम करने के तरीके (Ways to Reduce Pollution)
प्लास्टिक, रबर, कारखाने का धुआ, रसायण आदि चिजे प्रदूषण फैलाने वाली है इन दूषित चीजों का इस्तमाल करना बंध करना पड़ेगा। इससे प्रदूषण को रोका जा सकता है यह तो सभी जानते है परंतु इससे भी बड़ा प्रदूषण फैलाने वाला है मनुष्य का मन। जी हाँ, आज के परिवर्तनशील युग में मनुष्य का मन भी इस बाह्य चीजों की तरह काम, क्रोध, लोभ आदि विकारो से प्रदूषित हो चुका है। यह भी उतना ही इस वायुमंडल को प्रदूषित करता है जितना यह प्लास्टिक, रबर, कुडा कचरा आदि करता है।
जब कोई व्यक्ति विचार करता है तो उसके मन से सुक्ष्म तरंगे (Waves) निकलती हैै जो इस सृृृृष्टि में चारो और फैलती है। जो व्यक्ति सकारात्मक विचार (positive thought) करता है उसके मन से निकलती किरणे इस प्रकृति में सकारात्मक प्रभाव (Positive effect) डालती है। उसी तरह जो व्यक्ति नकारात्मक विचार करता है उसके मन से निकलती हुुई किरणे इस प्रकृति में नकारात्मक प्रभाव डालती है यानि जो व्यक्ति गुस्सा करता है वह जाने-अनजाने प्रकृति में प्रदुषण (Pollution) फैला रहा है।
अब इस पोलूशन को खत्म कैसे करें? यह आज के समय में बहुत बड़ा प्रश्न है।
यह मनुष्य शरीर प्रकृति के पांच तत्व जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश से बना हुआ है यही वजह से मनुष्य को जीने के लिए शुद्ध हवा, शुद्ध अन्न और शुद्ध जल की आवश्यकता होती है।
आज के समय में तो यह पांच तत्वो से बनी प्रकृति ही अशुद्ध हो गई है तो मनुष्य जो भी भोजन करता है, जल ग्रहण करता है उसमें यह अशुद्धियां ही ग्रहण करता है। जिससे उसके मन में क्रोध, ईर्ष्या, घृणा आदि विकारी नकारात्मक तत्वों ने जन्म लिया है। जिसकी वजह से वह पावन से पतित बन चुका है।
एक कहावत है कि "जैसा अन्न वैसा मन" और "जैसा मन वैसा तन"।
हम जैसा अन्न ग्रहण करेंगे वैसे ही हमें विचार आएंगे। आजकल तो कई लोग बाहर रेस्टोरेंट का खाना ज्यादा पसंद करते हैं। लेकिन वह नहीं जानते हैं कि वह हमारे मन और तन के लिए कितना हानिकारक है। जो इंसान खाना बना रहा है वहां की जगह, खाना बनाने वाले के भाव शुद्ध नहीं होंगे तो उसके वाइब्रेशन उस खाने में जाएंगे और वह खाने को अशुद्ध बनाएंगे और जो भी वह खाना खाएगा उसके मन में भी वैसे ही संकल्प चलेंगे।
मन की शक्ति (Power of mind)
If you wish to understand the universe, think of energy, frequency and vibration.
- Nikola Tesla
निकोला टेस्ला ने कहाँ है कि यदि आप ब्रह्मांड को समझना चाहते हैं, तो ऊर्जा, आवृत्ति और कंपन के बारे में सोचें। यानि कहने का भावार्थ है कि इस ब्रह्मांड में उर्जा (Energy) और कंपन (Vibration) का कितना बड़ा रोल है।
मन की शक्ति को जाने तो हम उससे बहुत कुछ पा सकते हैं। हमारे "संकल्प" (विचार) से तरंगें पैदा होती है और वह प्रकृति में चारों ओर फैलती है। अगर हम पॉझिटिव संकल्प करेंगे तो पॉझिटिव तरंगे फैलेंगी। और नेगेटिव संकल्प करेंगे तो नेगेटिव तरंगे फैलेंगी। फिर वही तरंगे प्रकृति से वापिस हमारे मन में आती है। जैसे कि किसी बड़े पहाड़ से अगर हम चिल्लाए कि "तू चोर है" तो गूँज (echo) की वजह से हमें वही आवाज वापस सुनने को मिलेगी कि "तू चोर है"। अगर हम चिल्लाए कि "तू राजा है" तो हमें भी वही सुनने को मिलेगा कि "तू राजा है"। तो हम जो दूसरों के लिए सोचते हैं, वो भी वैसा ही रीएक्शन देते हैं। कई बार हमें बुरे विचार आते हैं हम बोरिंग महसूस करते हैं तो हम उसी से जान सकते हैं कि यह हमारी नेगेटिव तरंगों की वजह से हो रहा है जो हमने प्रकृति में भेजी थी वह वापस आ रही है। और कई बार हमें खुशी मिलती है, मन प्रफुल्लित रहता है तो हम जान सकते हैं कि हमारे पॉजिटिव वेव्स हमें यह एहसास करा रहे हैं। इससे हम जान सकते हैं कि हमारे ही संकल्प यानी कर्म का अच्छा या बुरा फल हमें मिलता है।
बात करें प्रकृति की तो यह संकल्प शक्ति (Power of Thought) से ही हम प्रकृति को शुद्ध और पवित्र बना सकते हैं लेकिन उसके लिए जरूरी है शुद्ध, पवित्र मन और शुद्ध मन के लिए जरूरी है शुद्ध भोजन। जब हमारी भीतर की प्रकृति में बदलाव होगा तो बाहर की प्रकृति में अपने आप बदलाव होने लगेगा।
तो अब यह जरूरी है कि हम जो अन्न और जल ग्रहण करें वह शुद्ध हो साथ-साथ हमारे विचारों में भी पवित्रता हो। गंदी बातें न तो सुननी है, न मुख से बोलनी है। "हियर नो ईविल", "टॉक नो ईविल" सभी के प्रति हमारे संकल्प, सोच, बोल, चाल, व्यवहार ठीक हो। परमात्मा हमें सिखाते हैं कि "तुम देह नहीं आत्मा हो" और "मैं तुम आत्माओं का पिता परमात्मा हूँ", "तुम मुझे याद करो तो मैं तुम्हारे सारे विकर्मो का विनाश कर दूंगा"।
अगर हम भोजन परमात्मा की याद में बनाए और भोजन करने से पूर्व परमात्मा को याद कर हमारी संकल्प शक्ति का इस्तेमाल कर भोजन को पवित्र वाईब्रेशन (Vibration) दे तो हम उस भोजन को शुद्ध बना सकते हैं। फिर उस भोजन को ग्रहण करने से हमें ईश्वरीय गुण, शक्तियां प्राप्त होती है। वैसे ही जल को भी पवित्र करने के बाद ही ग्रहण करें।
वाइब्रेशन देने के लिए परमात्मा को याद कर संकल्प करें कि "मैं मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ", "मैं मास्टर पवित्र आत्मा हूँ", पवित्रता की किरणें मुझ आत्मा से निकल इस भोजन में और प्रकृति में फैल रही है, यह भोजन संपूर्ण पवित्र है।
यह देह (शरीर) भी प्रकृति ही है। तो हम हमारे शरीर रुपी प्रकृति और बाह्य प्रकृति के साथ-साथ अन्य आत्माओं के प्रति शुभ-भावना, शुभकामना रख पवित्रता के वाइब्रेशन दे सकते हैं। उसी से ही एक सुंदर वायुमंडल का निर्माण हो सकता है तो आज से ही हम बाह्य प्रकृति (जल, भूमि, हवा) और आंतरिक प्रकृति (हमारे गुण, स्वभाव, संस्कार) को दूषित न कर पवित्रता के वाइब्रेशन देकर उसे सजा दे। उसका श्रृंगार करें।
संकल्प से सृष्टि (Creation with determination)
कहते हैं ना कि ब्रह्मा ने संकल्प से सृष्टि की रचना की। अब इतनी विशाल पृथ्वी जो अशुद्ध बन चुकी है उसको स्वच्छ करना, शुद्ध करना कोई एक साधारण मनुष्य की तो बात ही नहीं है। उसके लिए जरूरत है ईश्वरीय शक्ति, ज्ञान और योग की। जोकि सिवाय परमात्मा के कोई भी दे न सके। वही परमपिता परमात्मा "कल्याणकारी शिव" कलियग के अंत में, संगमयुग में जो कि अभी चल रहा है तो ब्रह्मा तन द्वारा हमें "गीता योग या राजयोग" का ज्ञान दे रहे हैं। जिससे हर कोई अपने मन, वाणी, वर्तन में परिवर्तन कर सकता है।
जैसे प्रकृति में फैल रहे प्रदूषण का प्रभाव मनुष्य के शरीर और मन पर पड़ता है वैसे ही मनुष्य के विचारो (संकल्प) का प्रभाव प्रकृति पर भी पड़ता है। अगर हर कोई अपने जीवन व्यवहार में, विचार में शुद्धता लाए, अपने गुणों को परिवर्तन करे, अपनी आदतों को बदले तो यह प्रकृति में भी परिवर्तन हो सकता है। पानी में हमारे शुध्द संकल्पो के प्रवाह को फैलाकर, वायु मंडल में सकारात्मक किरणों को फैलाकर, पेड़ और पौधो को पवित्रता की शक्ति के स्पंदन (Vibration) देकर तथा हर मनुष्यात्मा के प्रति शुभ-भावना, शुभकामना रखकर उन्हें शांति की शक्ति देकर उसकी सोच को परिवर्तन कर नई आध्यात्मिक क्रांति फैलाकर ही यह प्रदूषण को रोका जा सकता है।
अब हमारा कर्तव्य है कि अभी जब परमात्मा स्वयं ज्ञान दे रहे है तो हम हमारे मन-बुद्धि को उस कल्याणकारी "परमपिता परमात्मा शिव" से जोड़कर राजयोग सीखकर उनकी श्रीमत अनुसार चले।
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