Short Spiritual Stories with Moral in Hindi | Humorous stories about the Holy Spirit

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Here is a Best Spiritual Story of One Child and Priest about remember God and spiritual growth.

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Bk Spiritual Stories

Best Spiritual Inspirational Story

एक लड़के और पंडित की कहानी

    एक गाँव में एक छोटासा लड़का हररोज खेत में गायों को घास चराने जाता था, उसी समय एक पंडितजी मंदिर (Temple) जाने के लिए उसी रास्ते से गुझरते थे तो उस लड़के को देखते थे। वह लड़का कुछ बोलता था जैसे किसी से बात करता हो, पंडितजी को आश्चर्य लगता था कि यह हररोज क्या बोलता रहता है। एक दिन पंडितजी ने उस लड़के से पूछा कि यह तुम हररोज किससे बात करते हो? तो उसने बताया कि मैं तो भगवान से बाते करता हूँ। फिर पूछा कि क्या बाते करते हो? तो उस लड़के ने अपनी बात बताते हुए कहाँ कि – है भगवान मुझे तो पता नहीं है कि तू कहाँ है लेकिन तुझे तो पता है कि मैं यहाँ हूँ तो क्यूँ न तुम यहाँ आ जाओ हम बैठ के बाते करेंगे, कुछ गपशप करेंगे, टाइमपास करेंगे। पंडितजी को यह बात सुनकर गुस्सा आ गया तो पंडितजी ने उस लड़के को कहाँ कि भगवान कोई टाइमपास करने के लिए है, गपशप करने के लिए है, तुम जानते भी हो वह कौन है? पाप लगेगा ऐसी बाते करेगा तो। लड़के ने कहाँ कि पंडितजी मुझे तो पता नहीं है कि भगवान कौन है, कहाँ रहता है तो मैं तो ऐसे ही बाते करता हूँ। अब आप ही मुझे बताओ कि भगवान से कैसे बातें करते है? फिर पंडितजी ने उसे संस्कृत में एक श्लोक सिखाया और कहाँ हररोज तुम इसी श्लोक से भगवान को याद करना। अब लड़के को न तो श्लोक समझमें आया और न तो उसका अर्थ पता था परंतु उसे लगा पंडितजी तो मुझसे ज्ञानी है ना! तो उन्होंने मुझे जो बताया वह तो सही ही होगा तो वह धीरे-धीरे श्लोक को रटने लगा।

फिर पंडितजी मंदिर में जाकर भगवान से कहने लगे कि है भगवान आज मैंने बड़ा अच्छा काम किया है एक अनपढ़ लड़के को तेरे से बात करने की सभ्यता सिखाई है। उतने में ही आकाशवाणी होती है कि तूने जो किया वह ठीक नहीं किया। पंडितजी ने कहाँ है प्रभु मुझ से क्या भूल हो गई? भगवान कहते है - वह लड़का जो हररोज मुझसे निश्चिंत होकर, बड़े भाव से इतनी अच्छी अच्छी बातें करता था, उसका पवित्र मन और उसकी मीठी बातों को सुनने के लिए मैं भी हररोज उसका इंतझार करता था कि वह कब मुझसे आकर बात करेगा लेकिन आज तूने उस लड़के को जो संस्कृत का श्लोक सिखाया है जिससे शायद वह बच्चा फिर मुझसे वह मीठी बाते नहीं करेगा जिसको सुनने के लिए मैं इंतझार करता हूँ। अब वो वही श्लोक रटेगा जो तू उसे सीखाके आया है, जिसका अर्थ भी उस बच्चे को पता नहीं है। ऐसा बिना भाव का रटन सुनना मुझे भी अच्छा नहीं लगेगा। आज से तुने मेरे बच्चे को मुझसे दूर करा दिया। यह अच्छा नहीं किया।

कहानी का सार यही है कि – भगवान तो हम मनुष्यात्माओं के पिता है तो वह पिता अपने बच्चों का सिर्फ भाव देखता है। वह यह नहीं देखता कि हम उसके लिए क्या करते है और क्या नहीं। जब श्लोक का अर्थ ही समझ में न आए तो वह श्लोक क्या काम का!

अगर कोई गुजराती या हिन्दी माध्यम में पढ़ने वाले लड़के को स्पेनिश (Spanish), फ्रेंच (french) या उर्दू (Urdu) में पढ़ने को बोला जाए तो वह कैसे पढ़ सकता है। जब उसको उस भाषा की ABCD भी पता नहीं है।

ABCD से एक और कहानी याद आती है।


एक बच्चे की ईश्वर से प्रार्थना

एक छोटा बच्चा चर्च में जाता है तो वहाँ देखता है चर्च में एक पादरी प्रार्थना (Prayer) कर रहे है। उनको देख वह लड़का भी गुनगुनाने लगता है, जैसे हर छोटा बच्चा करता है। पादरीजी भी उस बच्चे को देखते है कि यह बच्चा कुछ गुनगुना रहा है। जैसे ही पादरी की प्रार्थना पूरी होती है वह उस बच्चे को आशीर्वाद (blessing) देने के लिए उसके नजदीक आते है। फिर वह उस बच्चे से पुछते है कि - बच्चे तुम क्या बोल रहे थे? अब जैसे बच्चो की आदत होती है वैसे वह बच्चा सामने प्रश्न करता है कि आप क्या बोल रहे थे? तो पादरीजी उत्तर देते हुए कहते है मैं तो प्रार्थना करता था। फिर बच्चा कहता है मैं भी तो प्रार्थना ही कर रहा था।

पादरीजी को आश्चर्य लगता है कि यह छोटा बच्चा इतनी लम्बी कौन सी प्रार्थना कर रहा था?

पादरीजी उस बच्चे से पुछते है कि तुम कौन सी प्रार्थना कर रहे थे? अब बच्चा फिर पुछता है कि आप बताओ आप कौन सी प्रार्थना कर रहे थे? पादरीजी ने अपनी प्रार्थना सुनाई फिर बच्चे से कहाँ अब बताओ तुम कौन सी प्रार्थना कर रहे थे?

बच्चे ने कहाँ मैं तो ABCD बोल रहा था।

पादरीजी ने कहाँ भगवान के सामने ऐसे ABCD थोड़ी बोली जाती है?

बच्चे ने कहाँ वह तो पता नहीं कि ABCD बोली जाती है या नहीं लेकिन मुझे इतना पता है कि आपकी Prayer में जो ABCD के 26 अक्षर थे वही 26 अक्षर मेरी Prayer में भी थे। आपकी Prayer में उन 26 अक्षर को आपने ठीक रीति से जोड़ के वाक्य के रूप में कहाँ और मैंने सीधे सीधे ही भगवान से ABCD बोल दी और कहाँ जैसे तुझे ठीक लगे वैसे जोड़ लेना।

सार: बच्चे जो होते है वह बहुत होशियार और हास्यप्रद होते है परंतु मन के सच्चे, पवित्र होते है क्योंकि उनमें किसी के प्रति वेर-भाव या ईर्ष्या नहीं होती है इसीलिए ईश्वर या भगवान को भी बच्चे प्यारे लगते है। वास्तव में हम सभी एक भगवान के बच्चे हैं। भगवान को याद करने के लिए कोई बड़े शास्त्रों के ज्ञान की जरूरत नहीं है लेकिन एक बच्चे के जैसे शुद्ध और पवित्र दिल की जरूरत है। दिल से की गई याद या प्रार्थना भगवान तक पहुँचती ही हैं।

आज मनुष्य परमात्मा को याद तो करता है लेकिन वो भाव नहीं है जो एक बच्चे के उसके पिता के प्रति होने चाहिए क्योंकि वह ईस मोह माया के संसार रूपी पिंजरे में कैद हो गया है और अपने ही परमपिता परमात्मा को, उनके वास्तविक रूप को भूल गया है।

परमात्मा के प्रति स्नेह नहीं है इसीलिए मनुष्य कितनी भी महेनत करे उसको उतनी सफलता नहीं मिलती है जितनी वह चाहता है। मुसीबत के समय मनुष्य अपने आस-पास में सभी लोगो से मदद मांगता है लेकिन जब कोई सहारा न मिले तो वह भगवान को याद करता है। मनुष्य भगवान को याद तो करता है लेकिन कब? जब किसी से सहयोग न मिलने पर वह भगवान को याद करता है। फिर भी भगवान तो आखिर भगवान है वह उसे मदद जरूर करता है। अगर मनुष्य अपने जीवन के हर कार्य में भगवान को याद करे, उससे बात करे जैसे वह अपने परिवार के सभ्यों के साथ करता है, तो उसे हर कार्य में परमात्मा की मदद अवश्य मिलती है।

 

भगवान भी कुछ कहते है, उसे सुनो

       वर्तमान समय परमपिता परमात्मा शिव इस सृष्टी पर दु:खी मनुष्यात्माओ को सुख देने के लिए सृष्टि परिवर्तन का कार्य कर रहे है। जिस प्रकार भगवान ने “भगवद् गीता” में एक वायदा किया है...

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ गीता श्लोक ४-७॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ गीता श्लोक ४-८॥

इसी वायदे के अनुसार परमात्मा अधर्म को मिटाने और एक धर्म की स्थापना का कार्य करते है। जिसके लिए हम मनुष्यात्माओं को सत्य “गीता ज्ञान” और “राजयोग” सिखाकर उंच ते उंच पद की प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करा रहे है। परमात्मा के वास्तविक स्वरूप को जानकर की गई याद ही सच्ची याद है और उससे ही मनुष्यात्मा का कल्याण हो सकता है।



शिव भगवानुवाच : अब मैं इस सृष्टि पर ब्रह्मा तन में अवतरित हुआ हूँ, मुझे पहचानों। मैं ही तुम आत्माओं का पिता परमात्मा हूँ। मेरा नाम “शिव” है। अब यह कलियुग का अंत निकट भविष्य में होगा और इस सृष्टि पर सतयुगी दुनिया की शुरुआत होगी। अब मैं तुमको राजयोग की शिक्षा देता हूँ, जिससे तुम्हारे कई जन्मों के विकर्म विनाश होंगे और तुम मुक्ति-जीवनमुक्ति को प्राप्त होंगे। तुम अपने आत्मिक स्वरूप की स्थिति में स्थित होकर मुझ ज्योतिर्बिंदु स्वरूप परमात्मा को याद करो।

तो अभी हमने अपनी आंखे नहीं खोली और कुम्भकर्णी नींद में सोये रहे तो आगे अंत में स्थिति बहुत ही भयंकर आयेगी। तब कितना भी चिल्लाए, परमात्मा को याद करें लेकिन सजा के बिना और कोई रास्ता नहीं होगा।

तो आज से ही “राजयोग मेडिटेशन” कोर्ष शुरू करें और अपने जीवन को श्रेष्ठ गुणों से भरपूर करें। यह याद रखें - "परिवर्तन ही संसार का नियम है" और परिवर्तन होना ही है।

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